2 States (Viewer & Critic)

आप चेतन भगत के किताबो के फैंन है या नहीं ये तो मैं नहीं जानता पर फिलमों की समिक्षा करने शौकिन तो जरुर हैं।

आज कल जितनी फिल्में नहीं बनती उस्से ज्यादा तो आंट झांट लोग क्रिटिक्स बन जाते हैं, भले ही सालो को सनिमा की ABCDImage भी न आती हो पर खुद को क्रिटिक्स समझ कर कालर उंचा कर समाज में बडे ताव से घुमते हैं ये साले औऱ इनकी शिकार होती है अच्छी फिलमे और मासूम जनता ।

“हाल फिलाल में लगी फिलम 2 स्टेट्स ऐसी ऐक  हीरो की कहानी जो साधारण है, आपकी और मेरी तरह है, उसे भी कोई आज का केजरीवाल नहीं बन्ना है, उसे बस वही बन्ना है जो वो अपने लिए बन्ना चाहता है । ”

फिलम 2 स्टेट्स में एक, काफी अच्छा डायलाग था कि “कहानी में कोई हीरो हो या न हो कहानी हीरो होनी चाहिए”, पर होता बिलकुल इसके विपरीत है, हमारी आज कल की फिल्मो में हीरो तो एक से बढकर एक धुरंधर बाडी बिल्डर आते हैं पर कहानी कभी हिरो का दर्जा नहीं ले पाती ।

असल में 2 स्टेट्स की कहानी किसी दो अलग राज्यो के लोगो के प्यार पर नहीं बल्कि शादी के लिए दो परिवारो के बीच समझौते और रिश्ते की कहानी है । क्या सिर्फ दो अलग अलग राज्यों के लोगो को प्यार हो सकता है दो अलग धर्म या समुदाय के लोगो को नहीं…?

फिलाल मैं ये ब्लाग आपको ये बताने के लिए नहीं बता रहा हुँ कि फिलम कितनी अच्छी है या बुरी है, वो तो खुद आपको 200 रुपया खर्च कर या टोरेंट से डाउनलोड करके देखना पडेगा मैं आपको सिर्फ उन दो पहलुओ से मुखातिब कराने के लिए रहा हुँ जिसे हम दर्शक और क्रिटिक्स कहते हैं ।

खैर क्रिटिक्स हरामखोरो ने अपनी अपनी राय का रायता फैलाना शुरु कर दिया है फिलम को 2 स्टार दे कर और मुझे समझ नहीं आता ऐसा करके इन्हे क्या मिल जाता है । अगर आप किसी फिलम में पुरे 3 घंटे में अपना 200रु औऱ लंदर फंदर पापकार्न का पैसा वसुल रहे हो तो फिर फिलम बुरी नहीं है ।

पर इन क्रिटिक्स भोसडीवालो ने मुफ्त में फिल्में देखनी रहती है औऱ गुड गोबर करना रहता है जनता के सामने ।

क्रिटिक्स के चलते जनता अच्छी फिलमें को नहीं देख पाती है औऱ चली जाती है बाडीगार्ड और जय हो देखने, जिसे 4-4 स्टार दिए जाते हैं । क्रिटिक्स पर सबसे ज्यादा झांट तब फायर होता है जब ये नई फिलमो को प्रोतसाहन नहीं करते, नए टैलेंट को नहीं देखते और वही जब जन्ता देखती है तब ये गांडू अपनी आँख पर से लो बजट फिलम का चशमा हटाकर उस फिलम को देखते हैं और फिर उसका चिर हरण करते हैं ।

कुछ फिल्मे थी जैसे “साडा अड्डा, बी ए पास, जाली एल एल बी” इत्यादी  जिस पर क्रिटिक्स की नजर तब पडी जब ये फिल्में word of mouth से चल निकली और जाली एल एल बी तो राष्ट्रिय पुरुस्कार भी पा गई.

तो अंतत: मैं यही कहना चाहुँगा की आप अपने क्रिटिक्स खुद बनिए, फिल्मों के रेटींग या स्टार्स देखकर फिल्में देखने मत जाईए

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